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makka ki kheti

भविष्य की फसल है मक्का

भविष्य की फसल है मक्का

मक्का भविष्य की फसल है। हम यह बात इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि मक्का में पोषक तत्वों की मौजूदगी गेहूं से कहीं अधिक है। इसकी उपज भी साल में दो बार ली जा सकती है। इसके अलावा मनुष्य के लिए खाद्यान्न के साथ पशुओं के लिए पोषक चारा भी इससे मिल जाता है। इसकी खेती के लिए यदि सही तरीके अपनाए जाएं तो उपज 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है। खरीफ में पैदा होने वाली मक्का के अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी बिंदुओं हम प्रकाश डाल रहे हैं। 

कैसे करें खेती

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 मक्का की खेती के लिए बालवीर 2 मठ भूमि उपयुक्त रहती है। ऐसे खेत का चयन करें जिसमें से पानी निकल जाता हो। खेत को भैरव और कल्टीवेटर से दो-दो बार जोत कर पाटा लगाना चाहिए।अच्छी पैदावार के लिए आखरी जुताई में उर्वरकों का प्रयोग करें। 

कितना उर्वरक डालें

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उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले खेतों की मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए ताकि हमें पता चल सके कि हमारे खेत में किन-किन तत्वों की कितनी कमी है। यदि मृदा परीक्षण नहीं हुआ है तो देर से पकने वाली शंकर एवं संकुल पर जातियों के लिए 120, 60, 60 व शीघ्र पकने वाली प्रजातियों हेतु 100, 60,40 तथा देशी प्रजातियों के लिए 60, 30, 30 किलोग्राम नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाश की क्रमशः मात्रा का प्रयोग करें। अच्छी फसल के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग अवश्य करें। उसकी मात्रा 10 टन प्रति हेक्टेयर खेत में डालनी चाहिए। उक्त कभी कल उर्वरकों में से नाइट्रोजन को पानी लगाने के बाद के लिए आधी मात्रा में बचा लेना चाहिए बाकी उर्वरकों को मिट्टी में मिला दें। 

कब करें बिजाई

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देर से पकने वाली मक्का मई से मध्य जून तक कभी भी बोई जा सकती है। इसकी बिजाई मशीन से लाइनों में उचित दूरी पर करनी चाहिए ताकि भविष्य में निराई गुड़ाई उर्वरक प्रबंधन आदि में आसानी रहे। प्रति किलोग्राम बीज को ढ़ाई ग्राम थीरम, 2 ग्राम कार्बन्जिडाजिम या 3 ग्राम ट्राइकोडरमा से उपचारित करके ही बोना चाहिए। उपचारित करने के लिए उक्त तीनों दवाओं में से किसी एक को लेकर बीज पर हल्के से पानी के छींटे देकर हाथों में दस्ताने पहनकर हर दाने पर लपेट देना चाहिए।


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बिजाई व बीज दर

बिजाई करते समय ताना साडे 3 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरा ना डालें लाइनों की दूरी 45 सेंटीमीटर अगेती किस्मों के लिए एवं देर से पकने वाली किस्मों के लिए 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। अगेती किस्मों में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर मध्यम व देरी से पकने वाली प्रजातियों को 25 सेंटीमीटर दूरी पर लगाना चाहिए। देसी एवं छोटे दाने वाली किस्मों के लिए बीज 16 से 18 किलोग्राम एवं हाइब्रिड किस्म का बीज 20 से 22 किलोग्राम तथा सामान्य संकुल किस्मौं का 18 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग में लाना चाहिए। 

भूमि का उपचार जरूरी

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 जिन क्षेत्र में फफूंदी जनित बीमारियों की समस्या है उन क्षेत्रों में जमीन की गहरी जुताई तेज गर्मियों में एक एक हफ्ते के अंतराल पर करें ताकि मिट्टी पलट के सिक जाए। इसके अलावा सड़े हुए गोबर की खाद में ट्राइकोडरमा मिलाकर एक हफ्ते छांव में रखकर उसे भी खेत में बुरक कर तुरंत मिट्टी में मिला देना चाहिए। दीमक के प्रकोप वाले इलाकों में क्लोरो पायरी फास 20 ईसी की  ढाई लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर 20 किलोग्राम बालों में मिलाकर प्रत्येक के किधर से मिट्टी में मिला दें।

मक्के की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण एवं विस्तृत जानकारी

मक्के की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण एवं विस्तृत जानकारी

भारत में मक्का गेहूं के पश्चात सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है। मक्के की फसल को विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल में लाया जाता है। यह मनुष्य एवं पशुओं दोनों के लिए आहार का कार्य करती है। 

इसके अतिरिक्त व्यापारिक दृष्टि से भी इसका काफी अहम महत्त्व है। मक्के की फसल को मैदानी इलाकों से लेकर 2700 मीटर ऊंचे पहाड़ी इलाकों में भी सुगमता से उगाया जा सकता है। 

भारत में मक्के की विभिन्न उन्नत किस्में पैदा की जाती है, जो कि जलवायु के अनुरूप शायद ही बाकी देशों में संभव हो। मक्का प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन का बेहतरीन स्त्रोत है, जो कि मानव शरीर को ऊर्जा से भर देता है। 

इसके अंदर भरपूर मात्रा में फॉसफोरस, मैग्निशियम, आयरन, मैगनिज, जिंक और कॉपर जैसे खनिज प्रदार्थ भी उपलब्ध होते हैं। मक्का एक प्रकार से खरीफ ऋतु की फसल होती है। 

लेकिन, जहाँ सिंचाई के साधन मौजूद हैं, वहां इसे रबी और खरीफ की अगेती फसलों के रूप में पैदा किया जाता है। मक्के की फसल की बहुत ज्यादा मांग है, जिस कारण से इसे बेचने में भी सहजता होती है।

मक्के की खेती हेतु जलवायु एवं तापमान

मक्के की बेहतरीन पैदावार अर्जित करने के लिए उचित जलवायु एवं तापमान होना आवश्यक होता है। इसकी फसल उष्ण कटिबंधीय इलाकों में बेहतर ढ़ंग से वृद्धि करती है। 

इसके पौधों को सामान्य तापमान की जरूरत पड़ती है। शुरुआत में इसके पौधों को विकास करने के लिए नमी की बेहद जरूरत होती है, 18 से 23 डिग्री का तापमान पौधों के बढ़वार और 28 डिग्री का तापमान पौधे के विकास के लिए ज्यादा बेहतर माना जाता है। 

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मक्के की खेती हेतु जमीन कैसी होनी चाहिए

मक्के की खेती को आम तौर पर किसी भी जमीन में कर सकते हैं। लेकिन, अच्छी गुणवत्ता एवं अधिक पैदावार के लिए बलुई दोमट एवं भारी भूमि की जरूरत पड़ती है। 

इसके अतिरिक्त जमीन भी अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए। मक्के की खेती के लिए लवणीय एवं क्षारीय भूमि को बेहतर नहीं माना जाता है।

मक्का का खेत तैयार करने की विधि

मक्के के बीजों की खेत में बुवाई करने से पूर्व खेत को बेहतर ढ़ंग से तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम खेत की अच्छी तरीके से गहरी जुताई कर लेनी चाहिए। 

इसके पश्चात कुछ वक्त के लिए खेत को ऐसे ही खुला छोड़ दें। मक्के की बेहतरीन उपज के लिए मिट्टी को पर्याप्त मात्रा में उवर्रक देना जरूरी होता है। 

इसके लिए 6 से 8 टन पुरानी गोबर की खाद को खेत में डाल देना चाहिए। उसके बाद खेत की तिरछी जुताई करवा दें, जिससे कि खाद अच्छी तरह से मृदा में मिल जाये। 

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जमीन में जस्ते की कमी होने पर वर्षा के मौसम से पूर्व 25 किलो जिंक सल्फेट की मात्रा को खेत में डाल देना चाहिए। खाद और उवर्रक को चुनी गई उन्नत किस्मों के आधार पर देना चाहिए। 

इसके पश्चात बीजों की रोपाई के दौरान नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा को देना चाहिए। साथ ही, इसके अन्य दूसरे हिस्से को बीज रोपाई के एक माह पश्चात दें और अंतिम हिस्से को पौधों में फूलों के लगने के समय देना चाहिए।

मक्का की बुवाई का समुचित वक्त व तरीका

मक्के के खेत में बीजों को लगाने से पूर्व उन्हें अच्छे से उपचारित कर लेना चाहिए, जिससे बीजों की बढ़वार के दौरान उनमें रोग न लगे। 

इसके लिए सर्वप्रथम बीजों को थायरम या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम की मात्रा को प्रति 1 किलो बीज को उपचारित कर लें। इस उपचार से बीजों को फफूंद से संरक्षित किया जाता है। 

इसके उपरांत बीजों को मृदा में रहने वाले कीड़ो से बचाने के लिए प्रति किलो की दर से थायोमेथोक्जाम अथवा इमिडाक्लोप्रिड 1 से 2 ग्राम की मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए।

मक्के की खेती को प्रभावित करने वाला रोग और इसकी रोकथाम

मक्के की खेती को प्रभावित करने वाला रोग और इसकी रोकथाम

मिलेट्स यानी मोटे अनाज को श्री अन्न भी कहा जाता है। मिलेट्स की पैदावार को प्रोत्साहन देने के लिए भारत सरकार ने विगत वर्ष 2023 को मिलेट्स ईयर के तोर पर मनाया था। 

जब कभी मोटे अनाज अर्थात मिलेट्स की चर्चा होती है, तो स्वाभाविक रूप से मन में मक्का का प्रतिबिंब प्रदर्शित जरूर होता है। क्योंकि, वर्तमान में रबी सीजन की कटाई का कार्य तकरीब संपन्न हो चुका है। 

किसान भाई जल्द ही खरीफ फसलों की बुवाई की तैयारी में जुटने लगेंगे। हालाँकि, जिन किसानों की फसल खेत से उठ चुकी है, ऐसे अधिकांश किसान मक्के की खेती करने की तैयारी में भी लग गए हैं। 

हम आपके लिए मक्का की खेती को हानि पहुँचाने वाले झुलसा रोग और इसके नियंत्रण से जुड़ी जरूरी जानकारी प्रदान करेंगे, ताकि आपको अच्छी उपज लेने में सहयोग मिल सके।

मक्के की खेती में झुलसा रोग 

मक्के की फसल में उत्तरी झुलसा रोग लगने का संकट सदैव बना रहता है। अंग्रेजी और वैज्ञानिक भाषा में इसको टर्सिकम लीफ ब्लाइट रोग/Tursicum Leaf Blight Disease के नाम से जाना जाता है। 

झुलसा रोग इतना हानिकारक और खतरनाक है, कि यदि फसल में लग जाए, तो पूरी फसल को बर्बाद करने की क्षमता रखता है। 

कृषि विशेषज्ञों का कहना है, कि भारत के अंदर बड़ी तादात में किसान भाई मक्के की खेती करते हैं। परंतु, मक्के में कवक रोगों के लगने से इसकी फसल काफी प्रभावित हो जाती है, जिनमें विशेष रूप से उतरी झुलसा लगने का संकट अधिक होता है। 

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क्योंकि, इसका संक्रमण 17 से 31 डिग्री सेल्सियस तापमान सापेक्षिक आर्द्रता 90 से 100 प्रतिशत गीली और आद्र के मौसम में अनुकूल होता है, जो कि फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इससे मक्के की उपज में 90% प्रतिशत तक कमी आ जाती है।

झुलसा रोग के क्या-क्या लक्षण हैं ?

बतादें, कि उत्तरी झुलसा रोग का संक्रमण 10 से 15 दिन के पश्चात नजर आने लगता है। इस दौरान फसल में छोटे हल्के हरे भरे रंग के धब्बे नजर आते हैं। 

साथ ही, पत्तियों पर शिकार के आकार के एक से 6 इंच लंबे भूरे रंग के घाव हो जाते हैं, जिससे पौधे की पत्तियां झड़ कर नीचे गिरने लगती हैं। इससे उपज को काफी हानि होती है। 

झुलसा रोग से इस प्रकार बचाव करें ?

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, फसल की बुवाई से पूर्व पुराने अवशेषों को खत्म कर दें, जिससे इस रोग के लगने की संभावना कम हो जाती है। 

साथ ही, खेतों में पोटैशियम क्लोराइड के तौर पर पोटैशियम का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही, मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत व कार्बेंडाजिम का फसल पर छिड़काव करने से फसल को इस हानिकारक रोग से बचाया जा सकता है। 

मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें

मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें

मानसून का मौसम किसान भाइयों के लिए कुदरती वरदान के समान होता है। मानसून के मौसम होने वाली बरसात से उन स्थानों पर भी फसल उगाई जा सकती है, जहां पर सिंचाई के साधन नहीं हैं। पहाड़ी और पठारी इलाकों में सिंचाई के साधन नही होते हैं। इन स्थानों पर मानसून की कुछ ऐसी फसले उगाई जा सकतीं हैं जो कम पानी में होतीं हों। इस तरह की फसलों में दलहन की फसलें प्रमुख हैं। इसके अलावा कुछ फसलें ऐसी भी हैं जो अधिक पानी में भी उगाई जा सकतीं हैं। वो फसलें केवल मानसून में ही की जा सकतीं हैं। आइए जानते हैं कि कौन-कौन सी फसलें मानसून के दौरान ली जा सकतीं हैं।

मानसून सीजन में बढ़ने वाली 5 फसलें:

1.गन्ना की फसल

गन्ना कॉमर्शियल फसल है, इसे नकदी फसल भी कहा जाता है। गन्ने  की फसल के लिए 32 से 38 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना चाहिये। ऐसा मौसम मानसून में ही होता है। गन्ने की फसल के लिए पानी की भी काफी आवश्यकता होती है। उसके लिए मानसून से होने वाली बरसात से पानी मिल जाता है। मानसून में तैयार होकर यह फसल सर्दियों की शुरुआत में कटने के लिए तैयार हो जाती है। फसल पकने के लिए लगभग 15 डिग्री सेल्सियश तापमान की आवश्यकता होती है। गन्ने की फसल केवल मानसून में ही ली जा सकती है। इसकी फसल तैयार होने के लिए उमस भरी गर्मी और बरसात का मौसम जरूरी होता है। गन्ने की फसल पश्चिमोत्तर भारत, समुद्री किनारे वाले राज्य, मध्य भारत और मध्य उत्तर और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में अधिक होती है। सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन तमिलनाडु राज्य  में होता है। देश में 80 प्रतिशत चीनी का उत्पादन गन्ने से ही किया जाता  है। इसके अतिरिक्त अल्कोहल, गुड़, एथेनाल आदि भी व्यावसायिक स्तर पर बनाया जाता है।  चीनी की अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मांग को देखते हुए किसानों के लिए यह फसल अत्यंत लाभकारी होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=XeAxwmy6F0I&t[/embed]

2. चावल यानी धान की फसल

भारत चावल की पैदावार का बहुत बड़ा उत्पादक देश है। देश की कृषि भूमि की एक तिहाई भूमि में चावल यानी धान की खेती की जाती है। चावल की पैदावार का आधा हिस्सा भारत में ही उपयोग किया जाता है। भारत के लगभग सभी राज्यों में चावल की खेती की जाती है। चावलों का विदेशों में निर्यात भी किया जाता है। चावल की खेती मानसून में ही की जाती है क्योंकि इसकी खेती के लिए 25 डिग्री सेल्सियश के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है और कम से कम 100 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। मानसून से पानी मिलने के कारण इसकी खेती में लागत भी कम आती है। भारत के अधिकांश राज्यों व तटवर्ती क्षेत्रों में चावल की खेती की जाती है। भारत में धान की खेती पारंपरिक तरीकों से की जाती है। इससे यहां पर चावल की पैदावार अच्छी होती है। पूरे भारत में तीन राज्यों  पंजाब,पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक चावल की खेती की जाती है। पर्वतीय इलाकों में होने वाले बासमती चावलों की क्वालिटी सबसे अच्छी मानी जाती है। इन चावलों का विदेशों को निर्यात किया जाता है। इनमें देहरादून का बासमती चावल विदेशों में प्रसिद्ध है। इसके अलावा पंजाब और हरियाणा में भी चावल केवल निर्यात के लिए उगाया जाता है क्योंकि यहां के लोग अधिकांश गेहूं को ही खाने मे इस्तेमाल करते हैं। चावल के निर्यात से पंजाब और हरियाणा के किसानों को काफी आय प्राप्त होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=QceRgfaLAOA&t[/embed]

3. कपास की फसल

कपास की खेती भी मानसून के सीजन में की जाती है। कपास को सूती धागों के लिए बहुमूल्य माना जाता है और इसके बीज को बिनौला कहते हैं। जिसके तेल का व्यावसायिक प्रयोग होता है। कपास मानसून पर आधारित कटिबंधीय और उष्ण कटिबंधीय फसल है। कपास के व्यापार को देखते हुए विश्व में इसे सफेद सोना के नाम से जानते हैं। कपास के उत्पादन में भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है। कपास की खेती के लिए 21 से 30 डिग्री सेल्सियश तापमान और 51 से 100 सेमी तक वर्षा की जरूरत होती है। मानसून के दौरान 75 प्रतिशत वर्षा हो जाये तो कपास की फसल मानसून के दौरान ही तैयार हो जाती है।  कपास की खेती से तीन तरह के रेशे वाली रुई प्राप्त होती है। उसी के आधार पर कपास की कीमत बाजार में लगायी जाती है। गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश,हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक,तमिलनाडु और उड़ीसा राज्यों में सबसे अधिक कपास की खेती होती है। एक अनुमान के अनुसार पिछले सीजन में गुजरात में सबसे अधिक कपास का उत्पादन हुआ था। अमेरिका भारतीय कपास का सबसे बड़ा आयातक है। कपास का व्यावसायिक इस्तेमाल होने के कारण इसकी खेती से बहुत अधिक आय होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=nuY7GkZJ4LY[/embed]

4.मक्का की फसल

मक्का की खेती पूरे विश्व में की जाती है। हमारे देश में मक्का को खरीफ की फसल के रूप में जाना जाता है लेकिन अब इसकी खेती साल में तीन बार की जाती है। वैसे मक्का की खेती की अगैती फसल की बुवाई मई माह में की जाती है। जबकि पारम्परिक सीजन वाली मक्के की बुवाई जुलाई माह में की जाती है। मक्का की खेती के लिए उष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त रहती है। गर्म मौसम की फसल है और मक्का की फसल के अंकुरण के लिए रात-दिन अच्छा तापमान होना चाहिये। मक्के की फसल के लिए शुरू के दिनों में भूमि ंमें अच्छी नमी भी होनी चाहिए। फसल के उगाने के लिए 30 डिग्री सेल्सियश का तापमान जरूरी है। इसके विकास के लिए लगभग तीन से चार माह तक इसी तरह का मौसम चाहिये। मक्का की खेती के लिए प्रत्येक 15 दिन में पानी की आवश्यकता होती है।मक्का के अंकुरण से लेकर फसल की पकाई तक कम से कम 6 बार पानी यानी सिंचाई की आवश्यकता होती है  अर्थात मक्का को 60 से 120 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। मानसून सीजन में यदि पानी सही समय पर बरसता रहता है तो कोई बात नहीं वरना सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। अन्यथा मक्का की फसल कमजोर हो जायेगी। भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में सबसे अधिक मक्का की खेती होती है। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू कश्मीर और हिमाचल में भी इसकी खेती की जाती है।

5.सोयाबीन की फसल

सोयाबीन ऐसा कृषि पदार्थ है, जिसका कई प्रकार से उपयोग किया जाता है। साधारण तौर पर सोयाबीन को दलहन की फसल माना जाता है। लेकिन इसका तिलहन के रूप में बहुत अधिक प्रयोग होने के कारण इसका व्यापारिक महत्व अधिक है। यहां तक कि इसकी खल से सोया बड़ी तैयार की जाती है, जिसे सब्जी के रूप में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। सोयाबीन में प्रोटीन, कार्बोहाइडेट और वसा अधिक होने के कारण शाकाहारी मनुष्यों के लिए यह बहुत ही फायदे वाला होता है। इसलिये सोयाबीन की बाजार में डिमांड बहुत अधिक है। इस कारण इसकी खेती करना लाभदायक है। सोयाबीन की खेती मानसून के दौरान ही होती है। इसकी बुवाई जुलाई के अन्तिम सप्ताह में सबसे उपयुक्त होती है। इसकी फसल उष्ण जलवायु यानी उमस व गर्मी तथा नमी वाले मौसम में की जाती है। इसकी फसल के लिए 30-32 डिग्री सेल्सियश तापमान की आवश्यकता होती है और फसल पकने के समय 15 डिग्री सेल्सियश के तापमान की जरूरत होती है।  इस फसल के लिए 600 से 850 मिलीमीटर तक वर्षा चाहिये। पकने के समय कम तापमान की आवश्यकता होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=AUGeKmt9NZc&t[/embed]
फरवरी के कृषि कार्य: जानिए फरवरी माह में उगाई जाने वाली फसलें

फरवरी के कृषि कार्य: जानिए फरवरी माह में उगाई जाने वाली फसलें

गेहू की फसल में मुख्य कार्य उर्वरक प्रबंधन एवं सिंचाई का रहता है। ज्यादातर इलाकों में गेहूं में तीसरे एवं चौथे पानी की तैयारी है। तीसरे पानी का काम ज्यादातर राज्यों में पिछले दिनों हुई बरसात से हो गया है। गेहूं में झुलसा रोग से बचाव के लिए डायथेन एम 45 या जिनेब की 2.5 किलोग्राम मात्रा का पर्याप्त पानी में घोलकर छिड़काव करेंं। गेरुई रोग से बचाव के लिए प्रोपिकोनाजोल यानी टिल्ट नामक दवा की 25 ईसी दवा को एक एमएल दवा प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिडकाव करें। टिल्ट का छिडकाव दानों में चमक एवं वजन बढ़ाने के साथ फसल को फफूंद जनित रोगों से बचाता है। छिडकाव कोथ में बाली निकलने के समय होना चाहिए। फसल को चूहों के प्रकोप से बचाने के लिए एल्यूमिनियम फास्फाइड का प्रयोग करें।

जौ

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जौ की फसल में कंडुआ जिसे करनाल बंट भी कहा जाता है लग सकता है। यह रोग संक्रमित बीज वाली फसल में हो सकता है। बचाव के लिए किसी प्रभावी फफूंदनाशक दवा या टिल्ट नामक दवा का छिड़काव करें।

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चना

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चने की खेती में दाना बनने की अवस्था में फली छेदक कीट लगने शुरू हो जाते हैं। बचाव हेतु बीटी एक किलोग्राम या फेनवैलरेअ 20 प्रतिशत ईसी की एक लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करेंं।

मटर

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मटर में इस सयम पाउड्री मिल्डयू रोग लगता है। रोकथाम के लिए प्रति हैक्टेयर दो किलोग्राम घुलनशील गंधक या कार्बेन्डाजिम नामक फफूंदनाशक की 500 ग्राम मात्रा 500 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव करेंं।

राई सरसों

सरसों की फसल में इस समय तक फूल झड़ चुका होता है। इस समय माहूू कीट से फसल को बचाने के लिए मिथाइल ओ डिमोटान 25 ईसी प्रति लीटर दवा पर्याप्त पानी में घोलकर छिडकाव करेंं।

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मक्का

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रबी मक्का में सिंचाई का काम मुख्य रहता है । लिहाजा तीसरा पानी 80 दिन बाद एवं चौथा पानी 110 दिन बाद लगाएं। यह समय बसन्तकालीन मक्का की बिजाई के लिए उपयुक्त होने लगता है।

गन्ना

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गन्ने की बसंत कालीन किस्मों को लगाने के समय आ गया है। मटर, आलू, तोरिया के खाली खेतों में गन्ने की फसल लगाई जा सकती है। गन्ने की कोशा 802, 7918, 776, 8118, 687, 8436 पंत 211 एवं बीओ 91 जैसी अनेक नई पुरानी किस्में मौजूद हैं। कई नई उन्नत किस्तें गन्ना संस्थानों ने विकसित की हैं। इनकी विस्तृत जानकारी लेकर इन्हें लगाया जा सकता है।

फल वाले पौधे

नीबू वर्गीस सिट्रस फल वाले मौसमी, किन्नू आदि के पौधों में विषाणु जनित रोगों के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोरोपिड 3 एमएल प्रति 10 लीटर पानी में, कार्बरिल 20 ग्राम 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। नाशपाती एवं सतालू आदि सभी फलदार पौधों के बागों में सड़ी गोबर की खाद, मिनरल मिक्चर आदि तापमान बढ़ने के साथ ही डालें ताकि पौधों का समग्र विकास हो सके। आम के खर्रा रोग को रोकने के लिए घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी 0.2 प्रतिशत दवा की 2 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव करें। इसके अलावा अन्य प्रभावी फफूंदनाशक का एक छिडकाव करें। कीड़ों से पौधों को सुरक्षत रखने के लिए इमिडाक्लोरोपिड का एक एमएल प्रति तीन लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।

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फूल वाली फसलें

गुलदाउूजी के कंद लगाएं। गर्मी वाले जीनिया, सनफ्लावर, पोर्चलुका, कोचिया के बीजों को नर्सरी में बोएं ताकि समय से पौध तैयार हो सके।

सब्जी वाली फसलें

aloo ki kheti

आलू की पछेती फसल को झुलसा रोग से बचाने के लिए मैंकोजेब या साफ नामक दवा की उचित मात्रा छिडकाव करें। प्याज एवं लहसुन में संतुलित उर्वरक प्रबधन करें। खादों के अलावा शूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग करें। फफूंद जनित रोगों से बचाव एवं थ्रिप्स रोग से बचाव के लिए कारगर दवाओं का प्रयोग करें। भिन्डी के बीजों की बिजाई करें। बोने से पहले बीजों को 24 घण्टे पूर्व पानी में भिगोलें। कद्दू वर्गीय फसलों की अगेती खेती के लिए पॉलीहाउस, छप्पर आदि में अगेती पौध तैयार करें।

पशुधन

पशुओं की बदलते मौसम में विशेष देखभाल करें। रात के समय जल्दी पशुओं को बाडे में बांधें। पशुओं को दाने के साथ मिनरल मिक्चर आवश्यक रूप से दें।

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

किसान फसल की कटाई के बाद अपने खेत को किस तरह से तैयार करता है? खाद और जुताई के ज़रिए, कुछ ऐसी प्रक्रिया है जो किसान अपने खेत के लिए अप्रैल के महीनों में शुरू करता है वह प्रतिक्रियाएं निम्न प्रकार हैं: 

कटाई के बाद अप्रैल (April) महीने में खेत को तैयार करना:

इस महीने में रबी की फसल तैयार होती है वहीं दूसरी तरफ किसान अपनी जायद फसलों की  तैयारी में लगे होते हैं। किसान इस फसलों को तेज तापमान और तेज  चलने वाली हवाओ से अपनी फसलों को  बचाए रखते हैं तथा इसकी अच्छी देखभाल में जुटे रहते हैं। किसान खेत में निराई गुड़ाई के बाद फसलों में सही मात्रा में उर्वरक डालना आवश्यक होता है। निराई गुड़ाई करना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि कई बार सिंचाई करने के बाद खेतों में कुछ जड़े उगना शुरू हो जाती है जो खेतों के लिए अच्छा नही होता है। इसीलिए उन जड़ों को उखाड़ देना चाहिए , ताकि खेतों में फसलों की अच्छे बुवाई हो सके। इस तरह से खेत की तैयारी जरूर करें। 

खेतों की मिट्टी की जांच समय से कराएं:

mitti ki janch 

अप्रैल के महीनों में खेत की मिट्टियों की जांच कराना आवश्यक है जांच करवा कर आपको यह  पता चल जाता है।कि मिट्टियों में क्या खराबी है ?उन खराबी को दूर करने के लिए आपको क्या करना है? इसीलिए खेतों की मिट्टियों की जांच कराना 3 वर्षों में एक बार आवश्यक है आप के खेतों की अच्छी फसल के लिए। खेतों की मिट्टियों में जो पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे :फास्फोरस, सल्फर ,पोटेशियम, नत्रजन ,लोहा, तांबा मैग्नीशियम, जिंक आदि। खेत की मिट्टियों की जांच कराने से आपको इनकी मात्रा का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है, कि इन पोषक तत्व को कितनी मात्रा में और कब मिट्टियों में मिलाना है इसीलिए खेतों की मिट्टी के लिए जांच करना आवश्यक है। इस तरह से खेत की तैयारी करना फायेदमंद रहता है । 

ये भी पढ़े: अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार

खेतों के लिए पानी की जांच कराएं

pani ki janch 

फसलो के लिए पानी बहुत ही उपयोगी होता है इस प्रकार पानी की अच्छी गुणवत्ता का होना बहुत ही आवश्यक होता है।अपने खेतों के ट्यूबवेल व नहर से आने वाले पानी की पूर्ण रूप से जांच कराएं और पानी की गुणवत्ता में सुधार  लाए, ताकि फसलों की पैदावार ठीक ढंग से हो सके और किसी प्रकार की कोई हानि ना हो।

अप्रैल(April) के महीने में खाद की बुवाई करना:

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई) 

 गोबर की खाद और कम्पोस्ट खेत के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होते हैं। खेत को अच्छा रखने के लिए इन दो खाद द्वारा खेत की बुवाई की जाती है।मिट्टियों में खाद मिलाने से खेतों में सुधार बना रहता है,जो फसल के उत्पादन में बहुत ही सहायक है।

अप्रैल(April) के महीने में हरी खाद की बुवाई

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से गोबर की खाद का ज्यादा प्रयोग नहीं हो रहा है। काफी कम मात्रा में गोबर की खाद का प्रयोग हुआ है अप्रैल के महीनों में गेहूं की कटाई करने के बाद ,जून में धान और मक्का की बुवाई के बीच लगभग मिलने वाला 50 से 60 दिन खाली खेतों में, कुछ कमजोर हरी खाद बनाने के लिए लोबिया, मूंग, ढैंचा खेतों में लगा दिए जाते हैं। किसान जून में धान की फसल बोने से एक या दो दिन पहले ही, या फिर मक्का बोने से 10-15 दिन के उपरांत मिट्टी की खूब अच्छी तरह से जुताई कर देते हैं इससे खेतों की मिट्टियों की हालत में सुधार रहता है। हरी खाद के उत्पादन  के लिए सनई, ग्वार , ढैंचा  खाद के रूप से बहुत ही उपयुक्त होते हैं फसलों के लिए।  

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली फसलें

april mai boi jane wali fasal 

अप्रैल के महीने में किसान निम्न फसलों की बुवाई करते हैं वह फसलें कुछ इस प्रकार हैं: 

साठी मक्का की बुवाई

साठी मक्का की फसल को आप अप्रैल के महीने में बुवाई कर सकते हैं यह सिर्फ 70 दिनों में पककर एक कुंटल तक पैदा होने वाली फसल है। यह फसल भारी तापमान को सह सकती है और आपको धान की खेती करते  समय खेत भी खाली  मिल जाएंगे। साठी मक्के की खेती करने के लिए आपको 6 किलोग्राम बीज तथा 18 किलोग्राम वैवस्टीन दवाई की ज़रूरत होती है। 

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बेबी कार्न(Baby Corn) की  बुवाई

किसानों के अनुसार बेबी कॉर्न की फसल सिर्फ 60 दिन में तैयार हो जाती है और यह फसल निर्यात के लिए भी उत्तम है। जैसे : बेबी कॉर्न का इस्तेमाल सलाद बनाने, सब्जी बनाने ,अचार बनाने व अन्य सूप बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। किसान बेबी कॉर्न की खेती साल में तीन चार बार कर अच्छे धन की प्राप्ति कर सकते हैं। 

अप्रैल(April) के महीने में मूंगफली की  बुवाई

मूंगफली की फसल की बुवाई किसान अप्रैल के आखिरी सप्ताह में करते हैं। जब गेहूं की कटाई हो जाती है, कटाई के तुरंत बाद किसान मूंगफली बोना शुरू कर देते है। मूंगफली की फसल को उगाने के लिए किसान इस को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना शुरु करते हैं। तथा इस फसल के लिए राइजोवियम जैव खाद का  उपचारित करते हैं। 

अरहर दाल की बुवाई

अरहर दाल की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसकी 120 किस्में अप्रैल के महीने में लगाते हैं। राइजोवियम जैव खाद में 7 किलोग्राम बीज को मिलाया जाता है। और लगभग 1.7 फुट की दूरियों पर लाइन बना बना कर बुवाई शुरू करते हैं। बीजाई  1/3  यूरिया व दो बोरे सिंगल सुपर फास्फेट  किसान फसलों पर डालते हैं , इस प्रकार अरहर की दाल की बुवाई की जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां

April maon boi jane wali sabjiyan अप्रैल में विभिन्न विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई की जाती है जैसे : बंद गोभी ,पत्ता गोभी ,गांठ गोभी, फ्रांसबीन , प्याज  मटर आदि। ये हरी सब्जियां जो अप्रैल के माह में बोई जाती हैं तथा कई पहाड़ी व सर्द क्षेत्रों में यह सभी फसलें अप्रैल के महीने में ही उगाई जाती है।

खेतों की कटाई:

किसान खेतों में फसलों की कटाई करने के लिए ट्रैक्टर तथा हार्वेस्टर और रीपर की सहायता लेते हैं। इन उपकरणों द्वारा कटाई की जाती है , काटी गई फसलों को किसान छोटी-छोटी पुलिया में बांधने का काम करता है। तथा कहीं गर्म स्थान जहां धूप पढ़े जैसे, गर्म जमीन , यह चट्टान इन पुलिया को धूप में सूखने के लिए रख देते है। जिससे फसल अपना प्राकृतिक रंग हासिल कर सके और इन बीजों में 20% नमी की मात्रा पहुंच जाए। 

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खेत की जुताई

किसान खेत जोतने से पहले इसमें उगे पेड़ ,पौधों और पत्तों को काटकर अलग कर देते हैं जिससे उनको साफ और स्वच्छ खेत की प्राप्ति हो जाती है।किसी भारी औजार से खेत की जुताई करना शुरू कर दिया जाता है। जुताई करने से मिट्टी कटती रहती है साथ ही साथ इस प्रक्रिया द्वारा मिट्टी पलटती रहती हैं। इसी तरह लगातार बार-बार जुताई करने से खेत को गराई प्राप्त होती है।मिट्टी फसल उगाने योग्य बन जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां:

अप्रैल के महीनों में आप निम्नलिखित सब्जियों की बुवाई कर ,फसल से धन की अच्छी प्राप्ति कर सकते हैं।अप्रैल के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां कुछ इस प्रकार है जैसे: धनिया, पालक , बैगन ,पत्ता गोभी ,फूल गोभी कद्दू, भिंडी ,टमाटर आदि।अप्रैल के महीनों में इन  सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है।  अप्रैल में शादियों के सीजन में भी इन सब्जियों का काफी इस्तेमाल किया जाता है।इन सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए, किसान अप्रैल के महीने में इन सब्जियों की पैदावार करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे इस आर्टिकल द्वारा कटाई के बाद खेत को किस तरह से तैयार करते हैं , तथा खेत में कौन सी फसल उगाते हैं आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली होगी। यदि आप हमारी दी हुई खेत की तैयारी की जानकारी से संतुष्ट है, तो आप हमारे इस आर्टिकल को सोशल मीडिया तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं.

रंगीन मक्के की खेती से आ सकती है आपकी जिंदगी में खुशियों की बहार, जाने कैसे हो सकते हैं मालामाल

रंगीन मक्के की खेती से आ सकती है आपकी जिंदगी में खुशियों की बहार, जाने कैसे हो सकते हैं मालामाल

आजकल वो जमाना नहीं रहा जब किसान वही एक ही तरह की फसल का उत्पादन करते हुए उससे मुनाफा होने की उम्मीद लगाए बैठे रहें। आजकल किसान भाई भी अपने खेत में अलग अलग तरह की फसल लगा कर पारंपरिक खेती से अलग हटकर भी कमाई कर रहे हैं। रंग बिरंगी मक्का यानि मल्टी कलर्ड मक्का (Multi Colored Maize) भी ऐसी ही खेती है। यह दिखने में जितनी शानदार है, उतनी ही कमाई में भी इससे होती है। देश का बड़ा वर्ग खेती किसानी से जुड़ा है। भारत में गेहूं, मक्का, धान, दलहन, तिलहन की खेती किसान हर साल करोड़ों हेक्टेयर में करते हैं। खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान और रबी की गेहूं है। इन फसलों की बुवाई कर किसान कमाई करते हैं। एक्सपर्ट का मानना है, कि एक बार अगर किसान गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलों से हटकर कुछ करते हैं, तो इससे कमाई बंपर हो सकती है। रंगीन मक्का की खेती भी ऐसी ही फसल है। इसे सूझबूझ कर किसान सालाना लाखों रुपये की कमाई कर सकते हैं।

3 हजार साल पुरानी है रंगीन मक्के की खेती

भारत की बात की जाए तो यह अलग-अलग राज्यों में की जाती है। लेकिन मिजोरम में इसे बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। स्थानीय लोग इससे होने वाली कमाई को देखते हुए अधिक बुवाई करना पसंद करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है, कि रंगीन मक्का की खेती का इतिहास काफी पुराना है। भारत में रंगीन मक्का की खेती पिछले 3 साल से की जा रही है।
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क्या है मक्के के रंगीन होने का कारण

मक्का देश में कई रंगों में पाई जाती है। लाल, नीली, बैंगनी और काले रंग की मक्का की खेती भारत में प्रचलन में है। मक्का में फेनोलिक और एथोसायनिन तत्व पाए जाते हैं। इसी कारण मक्का अलग अलग रंग की होती है। मैजेंटा रंग पौधे में मौजूद एंथोसायनिन वर्णक के कारण होता है।

अच्छी पैदावार होने के लिए कैसा मौसम है उचित

मक्का की फसल एक प्रकार की उष्ण कटिबंधीय फसल है। अगर तापमान की बात की जाए तो इसकी पैदावार 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान पर अच्छी होेती है। पौधों की रोपाई के समय हल्की नमी होनी चाहिए। यदि मिट्टी की बात करें तो इसके लिए बलुई दोमट मिटटी बेहतर है। इसके अलावा एक्सपर्ट का मानना है, कि अगर बलुई मिट्टी नहीं है, तो आप इसे सामान्य मिट्टी में भी आसानी से उगा सकते हैं।

रोपाई और सिंचाई का तरीका

बीजों को खेत में लगाने से पहले दो से तीन बार गहरी जुताई कर दें और ऐसा करने के बाद कुछ समय के लिए खेत को खुला छोड़ दें। बेहतर उपज के लिए 7 से 8 टन गोबर की खाद डाली जा सकती है। पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए नाइट्रोजन, जिंक सल्फेट व अन्य तत्वों का छिड़काव कर देना चाहिए। एक एकड़ में करीब 22 हजार बीज उगाए जा सकते हैं। दो बीजों के बीच की दूरी 75 सेंटीमीटर होनी चाहिए। सिंचाई करने के कुछ दिन बाद बीजों की बुवाई कर दें। मक्का के बीज उगने लगे तो सिंचाई कर देनी चाहिए। हर फसल की तरह इस फसल में से भी सभी तरह के खरपतवार समय समय पर साफ करते रहें। इसके अलावा समय समय पर सिंचाई करते रहना भी आवश्यक है।

इतनी होती है कमाई

मक्का पककर तैयार होने पर कटाई की जा सकती है। एक अनुमान के अनुसार, एक हेक्टेयर खेत में 30 से 35 क्विंटल तक मक्का हो जाती है। बाजार में एक क्विंटल मक्का 3 से 4 हजार रुपये में बिकती हैं। एक हेक्टेयर में सवा से डेढ़ लाख रुपये तक की मक्का हो जाती है। किसान इसे बेचकर अच्छी कमाई कर सकते हैं।
मक्का की खेती के लिए मृदा एवं जलवायु और रोग व उनके उपचार की विस्तृत जानकारी

मक्का की खेती के लिए मृदा एवं जलवायु और रोग व उनके उपचार की विस्तृत जानकारी

मक्का का उपयोग हर क्षेत्र में समय के साथ-साथ बढ़ता चला जा रहा है। अब चाहे वह खाने में हो अथवा औद्योगिक छेत्र में। मक्के की रोटी से लेकर भुट्टे सेंककर, मधु मक्का के कॉर्नफलेक्स, पॉपकार्न आदि के तौर पर होता है। 

वर्तमान में मक्का का इस्तेमाल कार्ड आइल, बायोफयूल हेतु भी होने लगा है। लगभग 65 प्रतिशत मक्का का इस्तेमाल मुर्गी एवं पशु आहार के तौर पर किया जाता है। 

भुट्टे तोड़ने के उपरांत शेष बची हुई कड़वी पशुओं के चारे के तौर पर उपयोग की जाती है। औद्योगिक दृष्टिकोण से मक्का प्रोटिनेक्स, चॉक्लेट, पेन्ट्स, स्याही, लोशन, स्टार्च, कोका-कोला के लिए कॉर्न सिरप आदि बनने के उपयोग में लिया जाता है। 

बिना परागित मक्का के भुट्टों को बेबीकार्न मक्का कहा जाता है। जिसका इस्तेमाल सब्जी एवं सलाद के तौर पर किया जाता है। बेबीकार्न पौष्टिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण साबित होता है।

मक्का की खेती करने हेतु कैसी जमीन होनी चाहिए

सामान्यतः
मक्के की खेती को विभिन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है। परंतु, इसके लिए दोमट मृदा अथवा बुलई मटियार वायु संचार एवं जल की निकासी की उत्तम व्यवस्था के सहित 6 से 7.5 पीएच मान वाली मृदा अनुकूल मानी गई है।

मक्का की खेती हेतु कौन-सी मृदा उपयुक्त होती है

मक्के की फसल के लिए खेत की तैयारी जून के माह से ही शुरू करनी चाहिए। मक्के की फसल के लिए गहरी जुताई करना काफी फायदेमंद होता है। 

खरीफ की फसल के लिए 15-20 सेमी गहरी जुताई करने के उपरांत पाटा लगाना चाहिए। जिससे खेत में नमी बनी रहती है। इस प्रकार से जुताई करने का प्रमुख ध्येय खेत की मृदा को भुरभुरी करना होता है। 

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फसल से बेहतरीन उत्पादन लेने के लिए मृदा की तैयारी करना उसका प्रथम पड़ाव होता है। जिससे प्रत्येक फसल को गुजरना पड़ता है।

मक्का की फसल के लिए खेत की तैयारी के दौरान 5 से 8 टन बेहतरीन ढ़ंग से सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे डालनी चाहिए। 

भूमि परीक्षण करने के बाद जहां जस्ते की कमी हो वहां 25 किलो जिंक सल्फेट बारिश से पहले खेत में डाल कर खेत की बेहतर ढ़ंग से जुताई करें। रबी के मौसम में आपको खेत की दो वक्त जुताई करनी पड़ेगी।

मक्के की खेती को प्रभवित करने वाले कीट और रोग तथा उनका इलाज

मक्का कार्बोहाईड्रेट का सबसे अच्छा स्रोत होने साथ-साथ एक स्वादिष्ट फसल भी है, जिसके कारण इसमें कीट संक्रमण भी अधिक होता है। मक्का की फसल को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीट एवं रोगों के विषय में चर्चा करते हैं।

गुलाबी तनाबेधक कीट

इस कीट का संक्रमण होने से पौधे के बीच के हिस्से में हानि पहुँचती है, जिसके परिणामस्वरूप मध्य तने से डैड हार्ट का निर्माण होता है। इस वजह से पौधे पर दाने नहीं आते है।

मक्का का धब्बेदार तनाबेधक कीट

इस तरह के कीट पौधे की जड़ों को छोड़कर सभी हिस्सों को बुरी तरह प्रभावित करते है। इस कीट की इल्ली सबसे पहले तने में छेद करती है। इसके संक्रमण से पौधा छोटा हो जाता है और उस पौधे में दाने नहीं आते हैं। आरंभिक स्थिति में डैड हार्ट (सूखा तना) बनता है। इसे पौधे के निचले भाग की दुर्गंध से पहचाना जा सकता है।

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उक्त कीट प्रबंधन हेतु निम्न उपाय है

तनाछेदक की रोकथाम करने के लिये अंकुरण के 15 दिन के उपरांत फसल पर क्विनालफास 25 ई.सी. का 800 मि.ली./हे अथवा कार्बोरिल 50 फीसद डब्ल्यू.पी. का 1.2 कि.ग्रा./हे. की दर से छिड़काव करना उपयुक्त होता है। इसके 15 दिनों के उपरांत 8 कि.ग्रा. क्विनालफास 5 जी. अथवा फोरेट 10 जी. को 12 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर एक हेक्टेयर खेत में पत्तों के गुच्छों पर डाल दें।

मक्का में लगने वाले मुख्य रोग

1. डाउनी मिल्डयू :- इस रोग का संक्रमण मक्का बुवाई के 2-3 सप्ताह के उपरांत होना शुरू हो जाता है। बतादें, कि सबसे पहले पर्णहरिम का ह्रास होने की वजह से पत्तियों पर धारियां पड़ जाती हैं, प्रभावित भाग सफेद रूई की भांति दिखाई देने लगता है, पौधे की बढ़वार बाधित हो जाती है। 

उपचार :- डायथेन एम-45 दवा को पानी में घोलकर 3-4 छिड़काव जरूर करना चाहिए। 

2. पत्तियों का झुलसा रोग :- पत्तियों पर लंबे नाव के आकार के भूरे धब्बे निर्मित होते हैं। रोग नीचे की पत्तियों से बढ़ते हुए ऊपर की पत्तियों पर फैलना शुरू हो जाते हैं। नीचे की पत्तियां रोग के चलते पूर्णतया सूख जाती हैं। 

उपचार :- रोग के लक्षण नजर पड़ते ही जिनेब का 0.12% के घोल का छिड़काव करना चाहिए। 

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3. तना सड़न :- पौधों की निचली गांठ से रोग संक्रमण शुरू होता है। इससे विगलन के हालात उत्पन्न होते हैं एवं पौधे के सड़े हुए हिस्से से दुर्गंध आनी शुरू होने लगती है। पौधों की पत्तियां पीली होकर के सूख जाती हैं। साथ ही, पौधे भी कमजोर होकर नीचे गिर जाती है। 

उपचार :- 150 ग्रा. केप्टान को 100 ली. पानी मे घोलकर जड़ों में देना चाहिये।

मक्का की फसल की कटाई और गहाई कब करें

फसल समयावधि पूरी होने के बाद मतलब कि चारे वाली फसल की बुवाई के 60-65 दिन उपरांत, दाने वाली देशी किस्म की बुवाई के 75-85 दिन बाद, एवं संकर एवं संकुल किस्म की बुवाई के 90-115 दिन पश्चात तथा दाने मे करीब 25 प्रतिशत तक नमी हाने पर कटाई हो जानी चाहिए। 

 मक्का की फसल की कटाई के पश्चात गहाई सबसे महत्वपूर्ण काम है। मक्का के दाने निकालने हेतु सेलर का इस्तेमाल किया जाता है। सेलर न होने की हालत में थ्रेशर के अंदर सूखे भुट्टे डालकर गहाई कर सकते हैं।